दोसà¥à¤¤à¥‹, मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि पूरà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤®à¤¤à¤¿ जैसा शिकà¥à¤·à¤¾ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ इस देश को आज जरूरत है, जो à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आसà¥à¤¥à¤¾ और सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ करनेवालों को समà¥à¤®à¤¾à¤¨ देने का संसà¥à¤•à¤¾à¤° पैदा करती है। मैं ने आज पूरà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤®à¤¤à¤¿ के इस वारà¥à¤·à¤¿à¤• अवसर पर आकर, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की शिकà¥à¤·à¤¾, संसà¥à¤•à¤¾à¤°, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°, और अपने अनà¥à¤¦à¤° की कौशल को दूसरों को दिखाके, सिखाने की शकà¥à¤¤à¥€ देख के मà¥à¤à¥‡ हमारा उजà¥à¤µà¤² à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯, हमारा common future चमकता हà¥à¤† दिखता है ।
मैं बहà¥à¤¤ तलà¥à¤²à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ से इस मंच पर जो à¤à¥€ दिखाया बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने, उसके बहà¥à¤¤ सारी dimensions, बहà¥à¤¤ सारी पकà¥à¤· देख रह था । बहà¥à¤¤ सारी आयामा को तलाश रहा था । इस बचà¥à¤šà¥‡, बडे बनकर, कौनसी रासà¥à¤¤à¤¾ चà¥à¤¨à¥‡à¤‚गे ? ये बचà¥à¤šà¥‡ बडे बनकर कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे इस देश के लिये ? मà¥à¤à¥‡ लगा कि इस बचà¥à¤šà¥‡, à¤à¤• तरह à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° को अपने वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° में अपनी संसà¥à¤•à¤¾à¤° में, अपनी समठसे, अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ से अपनि जीने का रासà¥à¤¤à¤¾, जीने की पदà¥à¤§à¤¤à¥€ और उस जीने की पदà¥à¤§à¤¤à¥€ में दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ को global teacher बनायेंगे। à¤à¤¾à¤°à¤¤ को global teacher बनाने का यही रासà¥à¤¤à¤¾ मà¥à¤à¥‡ दिखता हे ।
– Sri Rajendra Singh, Waterman of India,
Ramon Magsaysay Awardee
(On being honored with Purnapramati Samman 2012)